कर्म हमारे अच्छे और सच्चे हो क्योंकि प्रभु तक वहीं पहुचते हैं बाकि तो लोगों का नजरिया है किस को कैसा लगा इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि रामायण की पंक्ति सभी भावों को चित्रार्थ करती हैं कि "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन्ह देखी वैसी" जिसका आपके लिए जैसा भाव है वो वैसा ही समझते हैं इसलिए दुनिया क्या कहती हैं लोग क्या कहेंगे इसमें उलझने की बजाए कर्म पथ पर अग्रसर रहे क्योंकि राह में आने वाले कंकड़ पत्थर शूल धूप और छाव यात्रा का हिस्सा मात्र है IIII
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